Rahul Bhatia Business Strategies | Indigo Airlines Case Study

rahul bhatia

आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है, आज हम अपनी इस ब्लॉक पोस्ट में द ग्रेट बिजनेसमैन Rahul Bhatia जी के बारे में बात करेंगे की कैसे उन्होंने भारत में सभी एयरलाइंस के सबसे बुरे समय के होने पर भी IndiGo एयरलाइन को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया। Rahul bhatia जी और उनके दोस्त Rakesh gangwal जी ने कैसे Indigo को अब फिलहाल में भारत के 60% से अधिक एयरलाइंस का बेताज बादशाह बना दिया। कैसे उन्होंने इंडिगो को लगातार 10 साल तक प्रॉफिट में रहने वाली पहली एयरलाइंस बना दिया। किस स्ट्रेटजी से वे साल में 10 करोड़ से अधिक पैसेंजर को यात्रा करते हैं। कैसे हुए दिन में 2000 से अधिक उड़ान भरने का रिकॉर्ड बनाया है। इसी के साथ इंडिगो एयरलाइंस को एशिया और भारत से बहुत से अवार्ड मिल चुके हैं। तो चलिए बिना किसी देरी के शुरू करते है।

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Rahul bhatia जी के कब शुरुवात करी Indigo airlines 

बात है सन 2006 की जब rahul bhatia जी और उनके दोस्त राकेश गंगवाल ने Indigo की शुरुवात करी। इस समय इंडियन एयरलाइंस अपने सबसे घाटे के दौर से गुजर रही थी। ऐसे समय में किसी नई कंपनी को ऊंचाइयों तक ले जाना बहुत ही मुश्किल का काम होता है। इस समय भारत की बहुत सी एयरलाइंस कंपनी कर्जे में डूब रही थी|
जिनमें कुछ इस प्रकार हैं sahara airlines, daccan airlines, paramount airways, Indian airlines, Kingfisher, jet airways, Go first ये सभी एयरलाइंस कंपनी किसी न किसी कारण से बंद हो गई। और बात करे इन सब के बंद होने के प्रमुख कारण का तो जो इनका फ्यूल होता है उसकी लगातार बढ़ती कीमत से इन सब का फाइनेंशियल लॉस हुआ और इन्हे अपनी अपनी एयरलाइंस बंद करनी पड़ी ।

Rahul Bhatia & Rakesh Gangwal buying strategy

सन 2005 में जब भारतीय एयरलाइंस में लोस चल रहा था तब राहुल भाटिया और उनके दोस्त राकेश गंगवाल जी ने एक अमेरिकी कंपनी को एक साथ 100 प्लेन का ऑर्डर दे दिया, इतना बड़ा ऑर्डर आज तक इतिहास में कभी किसी ने नहीं दिया था। उसे समय एक प्लेन की कीमत 800 करोड रुपए थी। उसे अमेरिकी कंपनी के का फायदा उठाकर rahul bhatia जी ने उसे एक प्लेन की कीमत 800 करोड़ की बजाय 600 करोड़ रखी। उस अमेरिकी कंपनी ने इसलिए डील ओके करदी क्योंकि उसे समय यह भारत में अपना पहला प्लांट चालू करने की सोच रही थी। अपने बिजनेसमैन माइंड सेट का फायदा उठाकर rahul bhatia जी ने कंपनी के सामने एक शर्त रखी कि वह सो प्लेन एक साथ ना लेकर हर 45 दिन में एक प्लेन लेंगे। अमेरिकी कंपनी ने भी यह सोचकर कि उन्हें भी एक साथ ज्यादा वर्कर और ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होगी इसलिए डील ओके कर दी। और यहां पर एक इन्वेस्टर से बात करके 800 करोड़ के प्लान को 700 करोड़ में देने कीडील करली, इसे बिना कुछ करें ही सीधे 100 करोड़ का फायदा हो गया एक प्लान के ऊपर और इस तरह 10 हजार करोड़ का बड़ा प्रॉफिट लिया।

Rahul Bhatia indigo

Indigo vs Kingfisher

Indigo और kingfisher की बिजनेस स्ट्रेटजी बिल्कुल अलग थी, जहां किंगफिशर लोगों को फैसिलिटी देने पर ज्यादा ध्यान देती थी। जैसे उसे समय किंगफिशर के पास 14 प्लेन थे, जिम 180 फीट थी उनमें से 180 सेट को घटकर 134 सेट कर दी। किंगफिशर की आमदनी में कमी हुई। वही दूसरी तरफ इंडिगो ने पैसेंजर की नीड पर ध्यान दिया। सोने की बिना मतलब की फैसिलिटी पर पैसा बर्बाद किया। इससे इंडिगो किंगफिशर की तुलना में हमेशा प्रॉफिट में रही और लगातार 10 साल तक प्रॉफिट में रहने वाली भारत की पहली कंपनी बनी। IndiGo ने एक समान एक स्ट्रेटजी पर फोकस किया और सफलता पाई।

Rahul Bhatia : विकास के साथ अपने काम में दक्षता हासिल करना

Rahul Bhatia जी ने एयरलाइंस में बढ़ते काम के साथ यह भी देखा कि मुनाफा कैसे बढ़ाया जाए। इसके लिए उन्होंने एक बहुत ही बड़ा कमाल का काम किया, जब एक वायुयान अपनी एक यात्रा पूरी करता है तो दूसरी यात्रा पर जाने से पहले उसकी सफाई में काम से कम आधे घंटे का टाइम लगता था। इसी बात को ध्यान में रखकर राहुल भाटिया जी ने उसे टाइम को कम करने के लिए प्लेन में एग्जिट गेट बढ़ा दिए। इनका यह तरीका कम कर गया और टाइम बच गया। जो जहाज किराए पर थे उनके लिए इन्होंने यह अपनाया की जहाज ज्यादा से ज्यादा टाइम हवा में रहे यानी यात्रा करें 24 घंटे में से 12 घंटे तक ऐसे इन्होंने किराए का पूरा पैसा वसूल किया। और IndiGo एयरलाइंस को फर्श से अर्श तक पहुंचा। और इसी के साथ इन्होंने फालतू का खर्चा हटाने के लिए सभी जहाज का मैकेनिक सिस्टम एक कर दिया यानी कोई भी पायलट किसी भी जहाज को उड़ा सकता का क्योंकि सब का सिस्टम एक ही था। Rahul Bhatia जी अपने एक नियम को फॉलो करते थे वह समझते थे कि एरोप्लेन की यात्रा से ज्यादा पैसा हम अपने खर्चों को काम करके कर सकते हैं इसलिए उन्होंने वायुयान के अंदर मेन की जगह वूमेन को रखना अच्छा समझा।

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      धन्यवाद |

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